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पंचायत चुनाव नजदीक आते ही गांवों में साजिशों का दौर तेज, पंचायतों में शुरू हुआ  सियासी जोड़-तोड़

पंचायत चुनाव नजदीक आते ही गांवों में साजिशों का दौर तेज, पंचायतों में शुरू हुआ सियासी जोड़-तोड़

चुनावी माहौल बनते ही पुराने रिश्ते और मित्रता की डोर गांवो में पड़ रही कमजोर

आरक्षण की स्थिति स्पष्ट ना होने के बावजूद चुनाव प्रचार में जुटे उम्मीदवार

विकास सिंह, पीलीभीत।

ब्यूरो, पीलीभीत-त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही 2026 में होने हैं, लेकिन गढ़ क्षेत्र के गांवों में अभी से चुनावी हलचल शुरू हो गई है। प्रधान पद के संभावित उम्मीदवार गांव-गांव बैठकें कर रहे हैं और लोगों से वोट की अपील करने लगे हैं। गांवों में आयोजित बैठकों में उम्मीदवार अपने-अपने वादे और दावे पेश कर रहे हैं। कोई विकास कार्यों की बात कर रहा है, तो कोई बेरोजगारी और स्वास्थ्य सुविधाओं सहित गांव के छोटे-छोटे मामलों को गांव में ही निपटाने को चुनावी मुद्दा बना रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इस बार युवाओं और महिलाओं से जुड़ी योजनाएं भी प्रमुख रूप से चर्चा में हैं। सोशल मीडिया भी प्रचार का अहम साधन बन गया है। जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य होने के साथ ही संभावित उम्मीदवारों में चुनावी सरगर्मी बढ़ गई है। हालांकि, आरक्षण की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हुई है, फिर भी दावेदार अपनी रणनीति बनाने और प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं। गांवों में सुबह व शाम के समय में पंचायत चुनाव को देखते हुए चौपालें सजने लगी हैं।समर्थक भी गांवो बाजारों में चाय-पान की दुकानों पर अपने दावेदारों का समर्थन करते देखे जा रहे हैं।कुछ ही महीनों में कार्यकाल समाप्त होने और आरक्षण में बदलाव की संभावना के चलते कई वर्तमान प्रधानों और अन्य जनप्रतिनिधियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। ग्राम पंचायतों जैसे-जैसे पंचायत चुनाव की आहट तेज हो रही है, वैसे-वैसे गांवों में राजनीतिक हलचल बढ़ने लगी है। चुनावी माहौल बनते ही पुराने रिश्ते और मित्रता की डोर कमजोर पड़ने लगी है। गांव-गांव में चर्चा का विषय अब केवल यही है कि कौन किस तरफ जाएगा और किसे मिलेगा जनता का समर्थन। इस बीच कुछ प्रत्याशी वोट की चाह में एक-दूसरे के खिलाफ साजिशें रचने से भी नहीं चूक रहे। सूत्रों के अनुसार, कई गांवों में संभावित प्रत्याशियों के बीच मतदाताओं को लुभाने की होड़ मच गई है। कहीं शराब और भोज का लालच दिया जा रहा है तो कहीं पुरानी योजनाओं और सरकारी कामों का श्रेय लेकर मतदाता को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ जगहों पर तो प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर जनता के बीच भ्रम पैदा करने की कोशिशें भी तेज हो गई हैं।स्थानीय लोगों का कहना है कि पंचायत चुनाव हमेशा से गांवों की राजनीति को गरमा देते हैं, लेकिन इस बार हालात और ज्यादा तिक्त नजर आ रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि पहले लोग आपसी भाईचारे से मतदान करते थे, पर अब वोट एक हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहा है। चुनाव के भावी उम्मीदवार फेसबुक और व्हाट्सऐप पर वीडियो व पोस्ट साझा कर रहे हैं, जिनमें वे लोगों का समर्थन और भीड़ दिखाकर अपनी लोकप्रियता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। उम्मीदवार अभी से वोट मांगने लगे हैं। हर बैठक में वही वादे दोहराए जाते हैं, जो पिछले चुनावों में भी किए गए थे। वहीं, सोशल मीडिया पर कुछ ग्रामीणों का कहना है कि हमें अब सिर्फ वादे नहीं, बल्कि काम चाहिए। जो भी ईमानदारी से काम करेगा, उसी को समर्थन मिलेगा। फिलहाल, चुनावी रणभेरी भले ही औपचारिक रूप से न बजी हो, लेकिन गांवों में माहौल पूरी तरह चुनावी रंग में रंगता जा रहा है। उम्मीदवारों ने प्रचार प्रसार की शुरुआत कर दी है और वोटरों को लुभाने की कवायद तेज हो गई है।
अब देखना यह होगा कि 2026 के पंचायत चुनाव में जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है और किसे नकार देती है।

छोटे गांव भी पीछे नहीं, जनता की भी बदल रही सोच……

छोटे-छोटे गांव, जो पहले चुनावी हलचल से थोड़ा दूर रहते थे, अब पूरी तरह से राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। वहां भी चौपालों और बैठकों का दौर तेज़ हो गया है। लोग चाहते हैं कि इस बार चुनाव में उनकी भी आवाज सुनी जाए और गांव में विकास के नए काम हों।
इस बार का पंचायत चुनाव केवल जाति या दबंगई पर आधारित नहीं होगा, बल्कि जनता विकास और शिक्षा को भी अहमियत दे रही है। खासकर युवा वर्ग चाहता है कि गांव में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं पर ध्यान दिया जाए। महिलाएं भी खुलकर अपने विचार रख रही हैं और चाहती हैं कि कोई ऐसा प्रतिनिधि आए जो सच्चे अर्थों में गांव की बेहतरी करे।

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